hi I am ram and I would like to get details on essay on paropkar in Sanskrit language .
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परोपकार शब्द ‘पर+उपकार’ इन दो शब्दों के योग से बना है । जिसका अर्थ है नि:स्वार्थ भाव से दूसरों की सहायता करना । अपनी शरण में आए मित्र, शत्रु, कीट-पतंग, देशी-परदेशी, बालक-वृद्ध सभी के दु:खों का निवारण निष्काम भाव से करना परोपकार कहलाता है ।
ईश्वर ने सभी प्राणियों में सबसे योग्य जीव मनुष्य बनाया । परोपकार ही एक ऐसा गुण है जो मानव को पशु से अलग कर देवत्व की श्रेणी में ला खड़ा करता है । पशु और पक्षी भी अपने ऊपर किए गए उपकार के प्रति कृतज्ञ होते हैं । मनुष्य तो विवेकशील प्राणी है उसे तो पशुओं से दो कदम आगे बढ़कर परोपकारी होना चाहिए ।
प्रकृति का कण-कण हमें परोपकार की शिक्षा देता है- नदियाँ परोपकार के लिए बहती है, वृक्ष धूप में रहकर हमें छाया देता है, सूर्य की किरणों से सम्पूर्ण संसार प्रकाशित होता है । चन्द्रमा से शीतलता, समुद्र से वर्षा, पेड़ों से फल-फूल और सब्जियाँ, गायों से दूध, वायु से प्राण शक्ति मिलती है।
पशु तो अपना शरीर भी नरभक्षियों को खाने के लिए दे देता है । प्रकृति का यही त्यागमय वातावरण हमें नि:स्वार्थ भाव से परोपकार करने की शिक्षा देता है । भारत के इतिहास और पुराण में परोपकार के ऐसे महापुरुषों के अगणित उदाहरण हैं जिन्होंने परोपकार के लिए अपना सर्वस्व दे डाला ।
राजा रंतिदेव को चालीस दिन तक भूखे रहने के बाद जब भोजन मिला तो उन्होंने वह भोजन शरण में आए भूखे अतिथि को दे दिया । दधीचि ऋषि ने देवताओं की रक्षा के लिए अपनी अस्थियाँ दे डालीं । शिव ने समुद्र मंथन से निकले विष का पान किया, कर्ण ने कवच और कुण्डल याचक बने इन्द्र को दे डाले ।
राजा शिवि ने शरण में आए कबूतर के लिए अपने शरीर का मांस दे डाला । ईसा मसीह सूली पर चढ़े और सुकरात ने लोक कल्याण के लिए विष का प्याला पिया । सिक्खों के गुरू गुरू नानक देव जी ने व्यापार के लिए दी गई सम्पत्ति से साधु सन्तों को भोजन कराके परोपकार का सच्चा सौदा किया ।
परोपकार के अनेक रूप हैं जिसके द्वारा व्यक्ति दूसरों की सहायता कर आत्मिक आनन्द प्राप्त करता है जैसे-प्यासे को पानी पिलाना, बीमार या घायल व्यक्ति को हस्पताल ले जाना, वृद्धों को बस में सीट देना, अन्धों को सड़क पार करवाना, अशिक्षित को शिक्षित करना, भूखे को रोटी, वस्त्रहीन को वस्त्र देना, गोशाला बनवाना, मुक्त चिकित्सालयों में अनुदान देना, प्याऊ लगवाना, छायादार वृक्ष लगवाना, शिक्षण केन्द्र और धर्मशाला बनवाना परोपकार के रूप हैं ।
आज का मानव दिन प्रतिदिन स्वार्थी और लालची होता जा रहा है दूसरों के दु:ख से प्रसन्न और दूसरों के सुख से दु:खी होता है । मित्र की सहायता करने के स्थान पर संकट के समय भाग खड़ा होता है ।
सड़क पर घायल पड़े व्यक्ति को देखकर अनदेखा कर देता है । उस व्यक्ति के करुण-क्रन्दन से उसका दिल नही पसीजता । दूसरे की हानि में उसे अपना लाभ दिखाई देता है ।
मानव जीवन बड़े पुण्यों से मिलता है उसे परोपकार जैसे कार्यों में लगाकर ही हम सच्ची शान्ति प्राप्त कर सकते हैं । यही सच्चा सुख और आनन्द है । परोपकारी व्यक्ति के लिए यह संसार कुटुम्ब बन जाता है- ‘वसुधैव व्युटुम्बकम्’ महर्षि व्यास ने भी कहा है कि परोपकार ही पुण्य है और दूसरों को दु:ख देना पाप ।
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परेषां उपकाराय कृतम् कर्म उपकारः कथयते । अस्मिन् जगति सर्वेजनाः स्वीयं सुखं वाञ्छन्ति । अस्मिन् एव जगति एवविधाः अपि जनाः सन्ति ये आत्मनः अकल्याणं कृत्वाऽपि परेषां कल्याणं कुर्वन्ति । ते एवम् परोपकारिणः सन्ति । परोपकारः दैव भावः अस्ति । अस्य भावस्य उदयेन एव समाजस्य देशस्य च प्रगतिः भवति । अचेतनाः परोपकर्मणि रताः दृश्यन्ते । मेघाः परोपकाराय जलं वहन्ति । नद्यः अपि स्वीयं जलं न स्वयं पिबन्ति । वृक्षाः परोपकाराय एव फलानि दधति एवं हि सज्जनाः परोपकाराय एव जीवनम् धारयन्ति ।
आत्मार्थं जीवलोकेऽस्मिन् को न जीवति मानवः ।
परं परोपकारार्थं यो जीवति स जीवति ॥
हिन्दी अनुवाद :दूसरों के लिए किया गया कार्य उपकार कहा जाता है । इस जगत में सभी लोग अपना-अपना ही सुख चाहते हैं । इस जगत में ऐसा भी व्यक्ति है जो अपना हानि करके भी दूसरों का कल्याण करते हैं । यही परोपकार है । परोपकार दैवभाव है । इस भाव उदय से समाज और देश का प्रगति होता है । अचेतन भी परोपकार में लीन देखा जाता है । मेघ परोपकार के लिए ही जल ढोता है । नदी भी अपना जल स्वयं नहीं पीता है । वृक्ष भी परोपकार के लिए फल देता है और इसी तरह सज्जन लोग दूसरों के उपकार के लिए जीवन धारण करते हैं।